चंद्रशेखर आजाद की 90वीं पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन, इस लेख में जाने उनके आजादी के जीवन के बारे में
- By Sheena --
- Monday, 27 Feb, 2023
90th Death anniversary of freedom fighter Chandra Shekhar Azad
Chandra Shekhar Azad Punyatithi: देश के स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) की आज यानी 27 फरवरी को पुण्यतिथि मनाई जा रही है और इस अवसर पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ स्थित भाबरा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता सीताराम तिवारी एक प्रकांड पंडित थे और उनकी माता जगरानी देवी एक गृहिणी थीं। बचपन में आजाद को चंद्रशेखर सीताराम तिवारी के नाम से पुकारा जाता था, लेकिन बाद में उन्होंने अपने नाम के साथ आजाद जोड़ लिया था।
बचपन से ही पक्के निशानेबाज थे आजाद
आजाद अपने बचपन में आदिवासियों के बीच रह कर आजाद ने धनुषबाण चलना सीखा और निशानेबाजी में निपुण हो गए थे और बाद में इसी हुनर से क्रांतिकारियों के बीच प्रसिद्ध भी रहे। आजाद ने एक समय के लिए झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में अपने रहने का ठिकाना बनाया। वहां वह निशानेबाजी का दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से बच्चों को पढ़ाने का कार्य भी करते थे। वह धिमारपुर गांव में अपने इसी हरिशंकर नाम से स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय हो गए थे। झांसी में रहते हुए चंद्रशेखर आजाद ने गाड़ी चलानी भी सीख ली थी।
कोड़े पड़ने पर बोल भारत माता की जय
15 साल की उम्र में गांधी जी प्रभावित होकर आजाद उनके असहयोग आंदोलन में शामिल होकर गिरफ्तार हो गए और जज के सवालों के जवाब में उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता, घर का पता जेल बताया। इससे नाराज होकर जज ने उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी। हर कोड़े पर वे वंदे मातरम और महात्मा गांधी की जय, भारत माता की जय के नारे लगाते रहे।
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के रहे सदस्य
सन 1922 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लेने के कारण आजाद की विचारधारा बदल गई और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बन गये। इस के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड को अंजाम देकर फरार हो गये। इसके बाद सन 1927 में बिस्मिल समेत 4 प्रमुख साथियों की वीरगति के पश्चात उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया। तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया। बाद में छिपकर दिल्ली पहुंच के असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दे दिया।
आजाद ने खुद को मारी थी गोली
आजाद ने नेहरू से निवेदन किया कि वे गांधी जी पर लार्ड इरविन से इन तीनों की फांसी की सीज को उम्र- कैद में बदलवाने के लिए कहें। इसी विषय पर शाम को अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र से मंत्रणा कर रहे थे। तभी सीआईडी का एसएसपी नाट बाबर जीप से वहा आ पहुचा। उसके साथ भारी संख्या में कर्नलगंज थाने की पुलिस भी थी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद ने तीन पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतार दिया। कई अंग्रेज सैनिक घायल हो गए। अंत में जब उनकी बंदूक में एक ही गोली बची तो वो गोली 27 फरवरी 1931 को आजाद ने खुद को मार ली। आजाद हमेशा के लिए इस दुनिया से आजाद हो गए। यह घटना 27 फरवरी, 1931 के दिन घटी और हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गयी।